Tuesday, 11 June 2013


              बम्पूका द्वीप की यादें

बंगाल की खाड़ी में छोटे-छोटे द्वीपों की शक्ल में कई सारे मोती बिखरे हुए हैं, इन्हीं मोतियों में से एक मोती है, बम्पूका द्वीप जिसकी यहाँ पर चर्चा की जा रही है । द्वीपों की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से जब हम दक्षिणी द्वीपों की यात्रा पर निकलते हैं तो रास्ते में टेरेसा द्वीप पड़ता है । यहां से करीब 2.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बम्पूका द्वीप । नक्शे  पर इसकी स्थिति 8°132’’ से 8°157’’ उत्तरी अक्षांश तथा 93°128’’ से 93°148’’ पूर्वी देशांतर के मध्य है ।
बम्पूका द्वीप पर कुछ आदिवासी रहते हैं जो शक्ल- सूरत से निकोबारी आदिवासियों से मिलते-जुलते हैं परंतु इनकी भाषा और रहन-सहन उनसे थोड़ा हटकर है । इन आदिवासियों की मदद के बगैर इस द्वीप पर पहुंचना काफी मुश्किल है । द्वीप प्रशासन की अनुमति के बगैर आम जनता अथवा पर्यटकों का इस द्वीप पर आना जाना पूर्णतः निषेध है ।
इस द्वीप पर दीपघर होने के कारण विभाग के लोग कभी भी इस द्वीप के निकट विभागीय जहाज एम.वी.प्रदीप अथवा एम.वी.सागरदीप से पहुंच सकते हैं । किन्तु द्वीप पर उतरने के लिए द्वीप के तटों की सही जानकारी न होने के कारण द्वीपवासियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है ।इन आदिवासियों का मुखिया ही इस द्वीप पर स्थित दीपघर का दीप परिचर है । इस कारण विभाग के लोगों को यहां आने - जाने में थोडी सुविधा रहती है । जब कभी भी इस द्वीप पर आना होता है तो पहले एक रेडियो संदेश  पुलिस रेडियो द्वारा भेजा जाता है जो टेरेसा द्वीप पर स्थित पुलिस रेडिया तक पहुंचता है । बम्पूका द्वीप से जब भी कोई टेरेसा द्वीप आता है तो उसके द्वारा  इसे अग्रेशित कर दिया जाता है । जिससे कि दीप परिचर या कोई अन्य द्वीप से निकल कर पास के एन्कर प्वाइंट पर आ जाता है और हम लोगों को किनारे पहुँचने  में कोई परेशानी नहीं होती ।
परन्तु 26 दिसम्बर 2004 की सुनामी के बाद यहां के समुद्री किनारों पर बहुत ज्यादा बदलाव हुआ । बहुत सारे नारियल के पेड़ बह गए और तट रेखा पर इतना ज्यादा बदलाव हुआ कि आदिवासियों की बिना मदद के द्वीप पर उतरना लगभग नामुमकिन सा हो गया । इतनी कठिनाइयों के बावजूद भी इस द्वीप का सफर बहुत ही रोमांचक, और मन को आहलादित कर देने वाला होता है ।

ऐंकर पॉइंट से बंबूका तट की ओर 
अगस्त, 2008 में दक्षिणी द्वीपों के दीपघरों का रख रखाव का कार्य करते हुए हम विभागीय जहाज एम.वी .सागरदीप द्वारा यहां आए । इस दल में दो अधिकारीयों तथा पांच कर्मचारीयों सहित कुल 7 लोग थे । द्वीप के एकदम पास जाकर जहाज का भोंपू बजवाया गया ताकि द्वीप वासियों को लगे की कोई जहाज आया है और वे उसे देखने के लिए किनारे की ओर दौडे, और इस क्रम में हमें लेने के लिए दीप परिचर को हमारी ओर भेजें । परंतु 15- 20 मिनट बीत जाने के बाद भी जब कोई  हलचल  नहीं दिखाई दी तो हम लोग इंजन चालित नौका लेकर किनारे की ओर चल पडे । कुछ देर बाद हमें किनारे की ओर से एक छोटी सी होडी( पेड़ के तने को खोखला कर बनाई गई नौका जिसमें एक ओर संतुलन भुजा लगी होती है ) अपनी और आती दिखाई दी ।
इस होड़ी में श्री इन्कानाइलू, दीपघर परिचर भी था । उसने पास आकर बताया कि, हमारी नौका किनारे तक नहीं जा सकती है, अतः इसे यही ऐन्कर कर दीजिए और मेरी होडी से किनारे चलिए । हमने उसकी बात मान ली और दो - दो लोग एक - एक बार में उसकी होड़ी से किनारे की ओर चल पडे । होड़ी काफी छोटी थी अतः उसमें दो होडी चलाने वाले के अतिरिक्त सिर्फ दो ही लोग बैठ सकते थें । होडी चप्पुओं के द्वारा चलायी जाती है ।
                 
                  एन्कर प्वाइंट से बम्पूका तट की ओर
                      
हम लोगों ने परिचर से उसका कुशल क्षेम जाना । बातचीत से पता चला कि सुनामी की वजह से आदिवासियों को अपने पहले वाले निवास स्थान से काफी पीछे हटना पड़ा । जीविका के मुख्य श्रोत नारियल के पेड़ तथा पशुधन का विनाश परिचर और उसके परिवार वालों के लिए कष्टदायी साबित हुआ । अब   कुछ ही नारियल के पेड़ तथा पशु उसके पास रह गये थे । यह भी पता चला कि द्वीप का लैंडिंग प्वाइंट भी कुछ पीछे हट गया है जिससे  दीपघर की दूरी भी लैंडिंग प्वाइंट से 2.5 के बजाय 5 किलोमीटर हो गई है वह भी समुद्र के  किनारे किनारे चलते हुए । जंगली रास्ते से होता हुआ छोटा रास्ता अब खत्म हो चुका था । इसके बाद सब लोग दीपघर पहुँचने के लिए धीरे-धीरे समुद्र के किनारे किनारे चलने लगे । तकरीबन 45 मिनट चलने के बाद  हमलोग लताओं और झाड़ियों की बनी एक सुरंगनुमा रास्ते के मुहाने पर थे ,जहां एक बरसाती नाला भी बह रहा था । यहां पहुंचकर हमलोगों ने ठंडे पानी से मुंह हाथ धोया, थोडा सुस्ताया , और फिर आगे सुरंगनुमा रास्ते में जा घुसे । कुछ दूर जाने पर हम इन लताओं की सुरंग के बाहर आ गए और एक पगडंडी मिली जिसके दोनों ओर उंची-उंची घासें थी।  इन उंची-उंची घासों  से यहां के  निवासी अपनी घरों की छत का निर्माण करते हैं । ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी फिल्मी शूटिंग लोकेशन पर आ गए हो । कभी घासें कम हो जाती तो कभी हम उसकी उंचाई में खो जाते । उनकी हरियाली मन को भली लग रही थी । दीपघर से करीब तीन सौ मीटर पहले तो घासों की उंचाई हमारी उंचाई से भी ज्यादा थी ।बीच में एक जगह हमें जंगली सांडों का झुंड भी मिला । उनके लम्बे लम्बे सींग देखकर पहले तो हम घबरा गए, परन्तु दीप परिचर के साथ में होने से कोई परेशानी नहीं हुईं । वे मरकहे नहीं थे ।

बम्पूका द्वीप की प्राकृतिक सुन्दरता

कुछ देर बाद इन मस्त सुहानी राहों से गुजरते हुए हम अपनी मंजिल यानी  बम्पूका दीपघर पर पहुच गए ।यहां का रख रखाव तथा अन्य निर्धारित  कार्य पूरा किया गया । फिर कुछ देर तक आस-पास के मनोहारी दृश्यों  और हरियाली का लुत्फ उठाने के बाद हमने अपनी वापसी यात्रा आरंभ की । बीच-बीच में कुछ बूँदाबाँदी भी होती रही ,लेकिन इस द्वीप की हरियाली के आगे ये सब बाधायें गौण थी। सभी लोग अपने-अपने तरीके से इस नैसर्गिक सुन्दरता का आन्नद ले रहे थे । इसकी तारीफ में सभी लोग अपने - अपने तरीके से कसीदे गढ रहे थे । कैमरे दृश्यों को कैद करने में मगन थे । इस नैसर्गिक  सुन्दरता ने हमें एकदम से तरोताजा कर दिया था । मलय समीर के मन्द - मन्द झोंके  मन को भले लग रहे थे । कुछ घंटों की पैदल यात्रा के बाद हम वापस वहीं पहंच गए जहां से चले थे यानि कि लैंडिग पॉइंट के  पास । दीपघर परिचर ने हमें अपने घर चलने का आग्रह किया । मन काफी प्रसन्न था, हमारी खुद की इच्छा भी सुस्ताने की हो रही थी ।अतः हम मना न कर सके । उसके घर से पहले एक झोपडी थी जिसमें एक बुत रखा हुआ थाजो सिर्फ हैट और कच्छा पहने हुए पालथी मारे बैठा था । परिचर से पुछने पर पता चला कि यह उनके पूर्वजों की यादगार है।
           
           हैट और कच्छा पहने हुए पालथी मारे बैठा हुआ बुत

खैर जो भी हो परिचर ने सभी का स्वागत कच्चे नारियल के ठंडे मीठे जल से किया । फिर अपने बाग बगीचे और जानवर दिखाए । जानवरों में यहां पर बकरी, सुअर तथा मुर्गियां पाली जाती हैं । सुअर को खाने के लिए नारियल की गरी दी जाती है। यहां के लोगों का जीवन बिल्कुल सीधा सादा है ।भोजन में चावल, केवड़ी (एक प्रकार का स्थानीय फल) मछली, सुअर का मांस इत्यादि होता है ।यहां के लोग अपनी जरूरत का सामान प्राप्त करने  के लिए पास के टेरेसा द्वीप पर निर्भर करते हैं जो फेरी सेवा द्वारा राजधानी     पोर्टब्लेयर से जुड़ा है । इस द्वीप पर सभी सुविधाएं जैसे अस्पताल, स्कूल, पोस्ट आफिस, फोन  इत्यादि की सुविधा है । दीप परिचर को तनख्वाह बैंक ड्राफ्ट द्वारा भेजी जाती है जिसे पाने के लिए उसे टेरेसा द्वीप के पोस्ट आफिस जाना पड़ता है तत्पश्चात वहां से ड्राफ्ट लेकर उसे कैश  कराने के लिए एक और द्वीप  नान कौरी जाना होता है । नान कौरी द्वीप के बैंक से पैसे  और अपनी जरूरत का सामान लेकर  वह अपने बम्पूका द्वीप वापस  आ जाता ।                         
                
                 बम्पूका तट से एन्कर प्वाइंट की ओर  
           
             
                 एन्कर प्वाइंट पर होडी से नौका पर चढते हुए 
          
इस द्वीप पर हमारे विभागीय परिचर का ही परिवार रहता है जो कि काफी बडा है । जिससे तकरीबन 40 के लगभग सदस्य हैं ।पानी के लिए यहां पर एक छोटा सा झरना है । जिसमें साल भर पानी रहता है । स्कूल और बिजली की सुविधा नहीं है । सन् 2004 की      सुनामी के पहले यहां पर सौर उर्जा द्वारा बिजली की सुविधा द्वीप प्रशासन द्वारा की गयी थी। एक प्राइमरी स्कूल भी खोला गया था। परन्तु सुनामी लहरों ने सब बर्बाद कर दिया । पढ़ने के लिए अब बच्चों को पास के टेरेसा द्वीप पर होस्टेल में रहकर पढाई करनी पडती है । दवाओं के लिए ये लोग स्थानीय जड़ी बूटीयों पर निर्भर रहते हैं तथा गहन चिकित्सा के लिए इन्हें टेरेसा द्वीप पर जाना पडता है । फोन की सुविधा नहीं है । फिलहाल यहां पर मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता है।
दीपघर परिचर इन्काइनाइलू की मेजबानी निष्कपट और निश्चल थी। कहा भी गया है सच्चा प्यार और मोहब्बत ग्रामों और देहातों में ही देखने को मिलता है  । शहरी दिखावे और आडंबर से दूर प्रकृति कि छांव में पले बढ़ें लोग प्रकृति की तरह ही शांत और मोहक होते है। वह बडे ही तन्मयता से अपने पालतु पशुओं और लगाए हुए पौधों ,जंगल की दिनचर्या आदि के बारे में अपनी टूटी फूटी हिन्दी में बता रहा था ,और हम आदिवासी जीवन की सही झलक पाने के लिए उससे रह-रह कर का प्रश्न पूछते जाते । हमारी जिज्ञासाओं का कोई अंत न था । अतः समय की गति को देखते हुए हमने इन्काइनाइलू से विदा ली ।
परन्तु ऐकर प्वाइंट तक पहुंचाना तो उसे ही था । उसने फिर अपनी होडी जिसे काम समाप्त होने के बाद किनारे से ऊपर रख दिया गया था , को पानी में उतारा और दो दो के दल में हमें ऐकर प्वाइंट पर स्थित हमारी नौका पर पहुंचा दिया  । जहां से हमलोग वापस जहाज पर आ गए । जहाज अपने अगले पडाव की ओर बढ चला किन्तु हमारी स्मृति अभी भी बम्पूका द्वीप की प्राकृतिक सुंदरता में खोई हुइ थी ।                                                 

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