Saturday, 1 June 2013

खूब माना लो हिन्दी के

खूब मना लो हिन्दी के

खूब मना लो हिन्दी के
दिवस सप्ताह और पखवाडे
चाहो तो मास और वर्ष मना लो
पर लगन बिना सब व्यर्थ है भाई ।

खूब खर्च लो हिन्दी पर रूपये पैसे
गरमा गरम हो चाय की चुस्की
करारे खूब समोसे और पकौडे
पर लगन बिना सब व्यर्थ है भाई ।

खूब करा लो हिन्दी के सम्मेलन
बुला कर मुख्य अतिथि अति विशिष्ट
करा लो हिन्दी पर बडे बडे अधिवेशन
पर लगन बिना सब व्यर्थ है भाई ।

खूब बता लो नियम और नियमावली
जोड तोड लो खंड प्रखंड और अधिनियम
कर के विचार विमर्श और खूब सभाएं
पर लगन बिना सब व्यर्थ है भाई ।

महामूर्ख भी महाकवि बन जाते
पत्थर की शिला भी तिर जाती
जब कर गुजरने की ललक हिया में होती
तभी तो लगन बिना सब व्यर्थ है भाई ।

उठ, जाग, छोड कर सब व्यर्थ बहाने
कुछ करने की जन जन में ललक जगा दे
उनमें हिन्दी के प्रति लगन लगा दे ।

क्योंकि लगन बिना सब व्यर्थ है भाई 

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