सुनामी और मैं "दीपस्तंभ इन्दिरा पॉइंट -2
अरे- रे- रे- यह क्या समुद्र का जल स्तर
अचानक तेजी से घटने लगा,
बहुत दूर तक समुद्र सूख चुका था और समुद्री जीवों को मैं तड़पता देख रहा था । अगले
ही पल मै यह क्या देखता हूँ कि समुद्र का
जल अब करीब-करीब अस्सी- नब्बे फुट ऊँची
दीवार में तबदील हो चुका था, और
काले नाग कि तरह फन फैलाए मेरी ओर ( यानि तट कि ओर ) दौड़ पड़ा था । ऐसा विचित्र दृश्य
मैंने अपने 35-40 साल के जीवन काल में न कभी देखा था न ही सुना । कुछ ही पलों में
दुर्दांत सागर की अतुल जलराशि ने मुझे अपने आगोश में ले लिया । चारों ओर जल ही जल
था, बेहद खारे,
उफनते और असीम जल से मैं सराबोर था । मेरी आखों से आँसू ढुलक पड़े । अपनी सेवा में
लगे कर्मचारियों और उनके परिवार वालों का हश्र मेरी कल्पना से परे था । मैं खुद
100 फुट का लौह स्तंभ अपने आपको किसी तरह धरती में जमाए खड़ा था,
और पानी मेरी गरदन तक आ पहुँचा था । मुझे कुछ वृक्षों और पास की पहाड़ी पर के
वृक्षों की शाखाएँ दिख रही थी । मै अब डूबा की तब डूबा की स्थिति में पड़ा अपनी
सेवा में लगे कर्मचारियों और अपनी सलामती के लिए ऊपर वाले को मन ही मन याद कर रहा
था । मेरे आस पास के नारियल,
केजूरीना तथा अन्य ऊंचे पेड़ों को जो मेरे सुख दुख में साथी थे,
जिनके साथ मैं बड़ा हुआ, को
मैं जड़ समेत उखड़कर पानी मे बहते देख रहा था । करीब आधे पौने घंटे तक इसी स्थिति
में पड़ा मैं विधि का विध्वंस देख रहा था । कुछ आधे पौने घंटे बाद जल का स्तर घटने
लगा, घटते घटते करीब करीब मेरी
आधी ऊंचाई तक आ गया, और फिर अचानक तेज़ी
से जलस्तर बढ़ा और बढ़ते बढ़ते फिर धड़ तक आ पहुँचा । मैंने सोचा अब तो गया,
पर धड़ तक ही आकर थम गया । यही क्रम दोपहरी तक चलता रहा । कुछ घंटों बाद जल स्तर
काफी घट गया, सागर की लहरें शांत होने
लगी, संध्या हो चली थी,
परंतु मैं अजीब सी नीम बेहोशी के आलम में था । बीच बीच मैं धरती कई बार डोलती रही
।
इन्दिरा पॉइंट दीप घर (वर्तमान स्तिथी) |
अगले दिन जब सुबह हुई तो मैंने देखा की
समुद्र जो पहले मुझसे 50 मीटर दूर हुआ करता था अब करीब करीब 50 मीटर मुझसे आगे बढ़
चुका है । मेरा नीचे का हिस्सा जहां लोग अपनी थकान मिटाने के लिए बैठते थे वहां
समुद्र का पानी था । इस भूकंप और भयानक समुद्री लहर ने जिसे बाद में लोग सुनामी कहने
लगे थे, मेरी नींव को हिलाकर रख
दिया ।
मेरी नींव के पास करीब डेढ़ से दो मीटर
गहराई तक पानी था जिसमें मेरे करीब ही बने पावर हाउस,
इन्सपैक्शन क्वार्टर की लोहे की छड़े और उनका मलबा पड़ा हुआ था । मुझसे 60 मीटर दूर
खड़ा मेरा पुराना साथी एरियल मास्ट जैसे कट कर कहीं बह गया था और मुझसे 200 मीटर
दूरी पर बना स्टाफ क्वार्टर भी बुरी तरह छतिग्रस्त हो गया था। आस पास दूर- दूर तक सिर्फ
सफ़ेद रेत ही नज़र आ रही थी। मेरी सेवा में लगे कर्मचारियों और मजदूरों का आस पास
कोई नामों निशान नहीं था।
कभी अपने आस पास की हरियाली और सुंदरता को देख कर मैं गर्व महसूस करता था, परंतु आज अपनी बदहाली और दुर्दशा पर खून के आँसू रो रहा हूँ । 27 दिसम्बर की दोपहर बीत रही थी, मैं सोच रहा था शायद दुनिया इस जोरदार भूकंप और सुनामी लहरों की चपेट में आकर समाप्त हो चुकी है, परंतु तभी मैंने एक डोनियार एयरक्राफ्ट को अपने आस पास चक्कर लगाते देखा तो मुझे भरोसा हो गया की अभी दुनिया समाप्त नहीं हुई और अभी बहुत कुछ बाकी है । अगले कुछ दिनों में मैंने नौसेना के चेतक हेलिकॉपटर को भी अपने पास उतरते देखा उनमें कुछ नौसैनिक और मेरे विभाग के कनिष्ट अभियंता थे, जो कैम्पबेल बे से आए थे, और इस भयानक हादसे के बाद मेरे आस पास का जायजा ले रहे थे । वे लोग मेरी सेवा में लगे कर्मचारियों में से किसी के भी जीवित या मृत पाए जाने की विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहे थे, और उन्हें ही खोज रहे थे । परंतु मैंने उन सबको असफल वापस जाते देखा। उनकी बात चीत से मुझे मालूम पड़ा की इस हादसे का केंद्र मुझसे कुछ ही दूरी पर स्थित इण्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में समुद्र के 15 की॰ मी॰ नीचे आया भूकंप था । इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.9 आँकी गई थी और जिसकी वजह से ही सुनामी लहरे पैदा हुई थी। सुनामी मारक लहरों ने कैंप बेलबे ,पिलोमीलों ,नान कोरी ,कचाल,कारनिकोबार तथा लिटल अंडमान द्वीपों मे भी भयानक तबाही मचाई थी । पोर्ट ब्लेयर जो कि अण्डमान निकोबार द्वीपों कि राजधानी है पर भी उसका काफी असर पड़ा था, पर अपेक्षाकृत कम । जिसकी वजह से मैंने सुना कि राहत और बचाव का कार्य हो पा रहा था । लोगो को खाने के पैकेट, पानी कि बोतलें और दवाईयाँ हैलीकोप्टर के द्वारा गिराई जा रही थी । तीनों सेनाओं और कोस्टगार्ड को मिला कर बना अण्डमान निकोबार कमांड, अण्डमान निकोबार प्रशासन की बचाव और राहत कार्यो में मदद कर रहा था । इस तबाही का आलम यहाँ से बहुत दूर नागापट्टनम चेन्नई और कन्याकुमारी के तटीय इलाकों में भी जबर्दस्त था । मैं तो आज भी उन पलों को सोचकर सिहर उठता हूँ।
19 जनवरी 2005 को तटरक्षक के एक चेतक हैलिकोप्टर ने मेरे आस पास चक्कर लगाया और कुछ लोगों को नीचे उतार गया । मैंने ध्यान से देखा तो वे मेरे विभाग के ही लोग थे । मेरे विभाग का यह दल जिसमें दो निदेशक, एक उप निदेशक और पाँच टेकनीशियन तथा एक सहायक थे, जो मेरे आस पास का जायजा ले रहे थे । अपने साथियों के बिछड़ जाने से दुःखी था, पर इन लोगों को देखकर मैं विचित्र सी खुशी महसूस कर रहा था, कि देखो मेरे विभाग के लोग किस तरह से इतनी कठिन परिस्थिति में भी मेरी खोज खबर लेने पहुँच चुके हैं । इन लोगों ने सबसे पहले यहाँ पर कार्यरत अपने साथियों कि आस पास बहुत खोज बीन कि घंटो ढूंढते रहे पर नतीजा शून्य ही रहा । सिर्फ उनके निवास स्थान के पास उन्हें कुछ कपड़े इत्यादि मिले । इन लोगों ने मलबों के नीचे भी झांक कर और उलट पलट कर देखा पर इनका प्रयास विफल ही रहा । तब इन लोगों ने वहीं स्टाफ क्वार्टर के मलबों के पास दो मिनट का मौन धारण कर अपने संभावित बिछड़े साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की । फिर इन लोगों ने तटरक्षक के गोताख़ोरों की मदद से मुझ तक पहुँचने का कठिन प्रयास किया, पर विफल रहे क्योंकि मेरे पास में ही पानी की गहराई करीब दो मीटर हो चुकी थी तथा मेरी नींव के चारों ओर रेत के बदले पावरहाउस और इंस्पेक्शन क्वार्टर की टूटी छत और उसकी लोहे की छड़ें पड़ी थी । समुद्र की लहरों के बीच वहां पहुंचना अत्यंत जोखिम भरा था । ये लोग किसी तरह से मेरी तेज़ रोशनी और रेकॉन को पुनः प्रचालित करने का निश्चय लेकर आए थे । 19 तारीख को तो ये लोग थक हार कर वापस तटरक्षक जहाज सी॰ जी॰ एस॰ विवेक पर चले गए जो पास मे ही इनका इंतज़ार कर रहा था, पर अगले ही दिन नई सोच और उमंग के साथ ये फिर आ धमके । इस बार भी आकर इन्होने मुझ तक पहुँचने का काफी प्रयास किया पर सफलता अभी दूर थी ।
कभी अपने आस पास की हरियाली और सुंदरता को देख कर मैं गर्व महसूस करता था, परंतु आज अपनी बदहाली और दुर्दशा पर खून के आँसू रो रहा हूँ । 27 दिसम्बर की दोपहर बीत रही थी, मैं सोच रहा था शायद दुनिया इस जोरदार भूकंप और सुनामी लहरों की चपेट में आकर समाप्त हो चुकी है, परंतु तभी मैंने एक डोनियार एयरक्राफ्ट को अपने आस पास चक्कर लगाते देखा तो मुझे भरोसा हो गया की अभी दुनिया समाप्त नहीं हुई और अभी बहुत कुछ बाकी है । अगले कुछ दिनों में मैंने नौसेना के चेतक हेलिकॉपटर को भी अपने पास उतरते देखा उनमें कुछ नौसैनिक और मेरे विभाग के कनिष्ट अभियंता थे, जो कैम्पबेल बे से आए थे, और इस भयानक हादसे के बाद मेरे आस पास का जायजा ले रहे थे । वे लोग मेरी सेवा में लगे कर्मचारियों में से किसी के भी जीवित या मृत पाए जाने की विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहे थे, और उन्हें ही खोज रहे थे । परंतु मैंने उन सबको असफल वापस जाते देखा। उनकी बात चीत से मुझे मालूम पड़ा की इस हादसे का केंद्र मुझसे कुछ ही दूरी पर स्थित इण्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में समुद्र के 15 की॰ मी॰ नीचे आया भूकंप था । इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.9 आँकी गई थी और जिसकी वजह से ही सुनामी लहरे पैदा हुई थी। सुनामी मारक लहरों ने कैंप बेलबे ,पिलोमीलों ,नान कोरी ,कचाल,कारनिकोबार तथा लिटल अंडमान द्वीपों मे भी भयानक तबाही मचाई थी । पोर्ट ब्लेयर जो कि अण्डमान निकोबार द्वीपों कि राजधानी है पर भी उसका काफी असर पड़ा था, पर अपेक्षाकृत कम । जिसकी वजह से मैंने सुना कि राहत और बचाव का कार्य हो पा रहा था । लोगो को खाने के पैकेट, पानी कि बोतलें और दवाईयाँ हैलीकोप्टर के द्वारा गिराई जा रही थी । तीनों सेनाओं और कोस्टगार्ड को मिला कर बना अण्डमान निकोबार कमांड, अण्डमान निकोबार प्रशासन की बचाव और राहत कार्यो में मदद कर रहा था । इस तबाही का आलम यहाँ से बहुत दूर नागापट्टनम चेन्नई और कन्याकुमारी के तटीय इलाकों में भी जबर्दस्त था । मैं तो आज भी उन पलों को सोचकर सिहर उठता हूँ।
19 जनवरी 2005 को तटरक्षक के एक चेतक हैलिकोप्टर ने मेरे आस पास चक्कर लगाया और कुछ लोगों को नीचे उतार गया । मैंने ध्यान से देखा तो वे मेरे विभाग के ही लोग थे । मेरे विभाग का यह दल जिसमें दो निदेशक, एक उप निदेशक और पाँच टेकनीशियन तथा एक सहायक थे, जो मेरे आस पास का जायजा ले रहे थे । अपने साथियों के बिछड़ जाने से दुःखी था, पर इन लोगों को देखकर मैं विचित्र सी खुशी महसूस कर रहा था, कि देखो मेरे विभाग के लोग किस तरह से इतनी कठिन परिस्थिति में भी मेरी खोज खबर लेने पहुँच चुके हैं । इन लोगों ने सबसे पहले यहाँ पर कार्यरत अपने साथियों कि आस पास बहुत खोज बीन कि घंटो ढूंढते रहे पर नतीजा शून्य ही रहा । सिर्फ उनके निवास स्थान के पास उन्हें कुछ कपड़े इत्यादि मिले । इन लोगों ने मलबों के नीचे भी झांक कर और उलट पलट कर देखा पर इनका प्रयास विफल ही रहा । तब इन लोगों ने वहीं स्टाफ क्वार्टर के मलबों के पास दो मिनट का मौन धारण कर अपने संभावित बिछड़े साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित की । फिर इन लोगों ने तटरक्षक के गोताख़ोरों की मदद से मुझ तक पहुँचने का कठिन प्रयास किया, पर विफल रहे क्योंकि मेरे पास में ही पानी की गहराई करीब दो मीटर हो चुकी थी तथा मेरी नींव के चारों ओर रेत के बदले पावरहाउस और इंस्पेक्शन क्वार्टर की टूटी छत और उसकी लोहे की छड़ें पड़ी थी । समुद्र की लहरों के बीच वहां पहुंचना अत्यंत जोखिम भरा था । ये लोग किसी तरह से मेरी तेज़ रोशनी और रेकॉन को पुनः प्रचालित करने का निश्चय लेकर आए थे । 19 तारीख को तो ये लोग थक हार कर वापस तटरक्षक जहाज सी॰ जी॰ एस॰ विवेक पर चले गए जो पास मे ही इनका इंतज़ार कर रहा था, पर अगले ही दिन नई सोच और उमंग के साथ ये फिर आ धमके । इस बार भी आकर इन्होने मुझ तक पहुँचने का काफी प्रयास किया पर सफलता अभी दूर थी ।
इन्दिरा पॉइंट दीप घर (वर्तमान स्तिथी) |
यूं तो इस दल में जितने भी लोग विभाग के आए थे वे सभी इस मिशन के दौरान असाधारण परिस्थितियों मे काम करने के आदी हो चुके थे, भले ही उन्हें इस तरह से काम करने का प्रशिक्षण न मिला हो । इन लोगों को मैं सैनिकों से भी ऊंचा दर्जा दूंगा, क्योंकि सैनिक ऐसी जंवामर्दी दिखाने के लिए ट्रेंड होते हैं,और उनसे इस प्रकार के कार्यों की अपेक्षा की जाती है, और वैसी ही सुविधा भी उन्हे दी जाती है। वे हर हाल में मौत से दो दो हाथ करने के लिए तैयार किए जाते है । इस दौरे में आए सभी लोग एक मिशन के तौर पर निकले थे । इनका मकसद था, हर हाल में जितने भी मेरे साथी दीपघर काम नहीं कर रहे है उन्हें ठीक करना । चाहे इसके लिए इन्हें कमर पर रस्सी बाँध कर चेतक से उतरना हो या नाव द्वारा किनारे पहुचकर जंगली कांटों भरे पथ पर गुजरना पड़े । इनमें से कुछ लोगों को काबरा द्वीप पर हैलीकाप्टर से कमर में रस्सी बाँध कर उतरना पड़ा । काबरा द्वीप मे तो तट ही नहीं दिख रहा था , पूरा तट ही पानी से ढंका था तब भी ये लोग किसी तरह से कमर तक पानी मे ही हैलीकाप्टर से उतारे गए थे। आप कल्पना कीजिए की सुनामी के बाद का जब हालात ऐसे थे की समुद्र का नाम लेने से लोग डरते हों उस समय कमर तक पानी में सूनसान द्वीप पर चेतक से कमर में रस्सी बाँधकर उतरना एक अप्रशिक्षित व्यक्ति के लिए आसान नहीं है ।
कुछ ऐसा ही निर्णय मुझे पुनः प्रचलित
करने आए कर्मचारियों और अधिकारियों का भी था। मैं अब जो आगे जो कहने जा रहा हूँ
उसकी सिर्फ कल्पना मात्र से आप रोमांचित हो जाएंगे । सवेरे जब विभाग के लोग तटरक्षक के लोगों के साथ मेरे पास आए तो
उनका विचार था--सबसे पहले दो तटरक्षक के गोता खोरों को चेतक से 30 मीटर की ऊंचाई
पर मेरी रेलिंग पर उतारा जाए और वे भीतर आकर खोज बीन करें । उन्हें संदेह था ,कि
हो सकता है यहाँ कार्यरत कर्मचारियों ने भी बढ़ते पानी को देखकर मेरे भीतर घुसकर अपनी जान
बचाने का प्रयास किया हो जैसा की कीटिंग प्वाइंट दीपघर में हुआ था । फिर उसके बाद
मेरे दरवाजे से किनारे तक रस्सी का पुल बनाया जाए ,
ताकि विभाग के कर्मचारी अंदर आकर नए
प्रकाशीय उपकरण और रेकॉन की स्थापना कर मेरे वहाँ खड़े होने को सार्थक कर सके,
और ऐसा ही किया गया । पहले दो तटरक्षक के गोताखोर चेतक से रेलिंग पर सावधानी से
उतरे और उतर कर ऊपर के शीशों को तोड़ कर भीतर आए । फिर नीचे के दरवाजे से बाहर आकर
बताया की अंदर कोई भी नहीं है । इसके बाद किनारे से गन फायर कर रस्सियों का आदान
प्रदान कर पुल बनाने का असफल प्रयास किया गया । यह सब करते करते दोपहर हो गई । तब
विभाग के दो जाँबाज कर्मचारियों ने अपने अधिकारियों से कहा कि सर जैसे गोताखोर लोग
अंदर गए हैं वैसे ही हमको भी अंदर भिजवा दीजिये । दोनों अधिकारियों को यह कठिन
निर्णय लेने में थोड़ा वक्त लगा क्योंकि तटरक्षक और हमारे लोगों में काफी असमानताएं
होती है । तटरक्षक के लोग ऐसे कामों में माहिर होते है फिर भी ऐसा जोखिम वे कभी
कभी ही उठाते है और हमारे लोग कभी कभार
ऐसा कदम असमंजस या आगे कुंआ पीछे खाई की स्थिति में उठाते है,
जैसा की काबरा द्वीप में उठाया था । ऐसे कामों में वे एकदम अप्रशिक्षित होते है ।
इस समय ऐसी ही नाज़ुक स्थिति थी ।
कर्मचारियों का विचार मानने का अर्थ था उन्हें सीधे सीधे मौत के मुँह में भेजना,
क्योंकि इतनी ऊंचाई पर चेतक को भी सटीक रोके रखना और उस ऊंचाई पर हमारे लोगों में
भय न होना, तथा गहरी सावधानी ही सफलता
की सीढ़ी थी । ऊपर हवा का बहाव भी अधिक महसूस होता है । एक उहापोह की स्थिति थी ।
हमारे लोगों का आगे बढ़ना जोखिम भरा था और पीछे हटना कायरता और मिशन को अधूरा छोड़ना
। अगर काम हो जाता है तो शाबाशी ज्यादा नहीं मिलनी थी,
लेकिन अगर कुछ अनहोनी हो जाती तो झाड़ भरपूर मिलनी थी । आखिर कठोर निर्णय लिया गया
और दोनों कर्मचारी तटरक्षक के गोताख़ोरों की भांति ही सावधानी से रेलिंग पर उतरे ।
प्रकाशीय उपकरण, नया रेकॉन,
बैटरी, सोलर पैनल्स,
टूल्स इत्यादि को भी इसी तरह चेतक से मेरे अंदर भेजा गया । करीब ढाई तीन घंटो के
अथक प्रयास से दोनों कर्मचारियों ने सब कुछ यथास्थान पर ठीक ढंग से स्थापित कर
मेरे वहाँ इन्दिरा प्वाइंट में होने को सार्थक कर दिया । जिसके लिए मैं उन दोनों
कर्मचारियों का एहसानमंद हूँ । उनकी जांबाजी के आगे मैं नतमस्तक हूँ ,मिशन
पूरा होने की खुशी में मैं भी इनके साथ खुशी में झूम उठा । इन दोनों ने भी अंत में
मेरे भीतर का मुआयना कर अपने बिछड़े साथियों को खोजने का असफल प्रयास किया और फिर
जैसे आए थे वैसे ही मेरी रेलिंग से चेतक द्वारा बाहर निकल आए । जब ये लोग पूरा
मिशन खत्म कर वापस तटरक्षक जहाज सी॰ जी॰ एस॰ विवेक पर पहुंचे तो उनके बाकी साथियों
ने हर्षध्वनी कर उनका जोरदार स्वागत किया
।
आज भी मैं बार बार सोचता हूँ की ऐसी कौन
सी अदृश्य शक्ति है जो मेरे विभाग के कर्मचारियों को जान हथेली पर लेकर आगे बढ़ने
और मिशन को हमेशा पूरा करने की प्रेरणा देती है । मेरे विभाग के जांबाज कर्मचारी और
अधिकारीगण अपने संभावित बिछड़े साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित कर चले गए परंतु मेरा
मन अब भी यह नहीं मानता है । आज भी मैं उनकी प्रतीक्षा वैसे ही कर रहा हूँ जैसे
पहले करता था जब वे कैम्पबेल बे या और कहीं जाया करते थे ।
................दीपस्तंभ
"इन्दिरा प्वाइंट"
No comments:
Post a Comment