Wednesday, 6 December 2023


 पर रहते हो, तुम मौन सदा । 


ओ शानदार,फ़ौलादी दीप स्तंभ,

हो खड़े कर्मवीर, तुम सीना ताने, 

सागर की उत्ताल तरंगों में,

चिलचिलाती धूप और बहारों में,

चक्रवाती तूफान और घटाओं में,

पर रहते हो, तुम मौन सदा ।














नौचालन के हो, बेजोड खिलाड़ी,

भटकी किश्ती,और जहाजों के प्यारे,

घनघोर अँधियारे को, चीरती चमक तुम्हारी,   

देख समंदर में भटके नाविक हर्षाते ।  

रेकान और DGNSS से सागर मध्य, 

जहाजों  को उनकी  स्थिति  बताते । 

NAIS से समंदर में जहाजों को,

दोस्त और दुश्मन की,पहचान कराते । 

Navtex से मौसम और नौचालन की,

ताजा- तरीन सूचनाएं पहुंचाते ।    


पर रहते हो  तुम  मौन  सदा । 

देश विदेश से व्यापार में, 

भूमिका कमतर नही तुम्हारी l

अंतर्राष्ट्रीय, सागर पर्यटन, देन तुम्हारी । 

सच  पूछो तो तुम  देश  की GDP भी बढाते हो, 

नई संभावनाएं और नई तकनीक तलाशते हो,

सारे जहां की जानकारी रखते हो।  


पर  रहते  हो, तुम  मौन सदा ।  

पर  रहते  हो, तुम  मौन सदा ।  

                                 - ओमकार नाथ मौर्य

Tuesday, 4 April 2017

आँख न दिखाना,ऐ दुनियावालो


आँख न दिखाना,ऐ दुनियावालो,
कि,धरा है,ये हिंदुस्तानी ।
कण कण है, इसका रक्तरंजित,
कि,धरा है,ये स्वाभिमानी ।
विश्वशांति ध्येय हमारा,
मित्र भाव रखते हैं सभी से,
मख़ौल न उड़ाओ,धैर्य का हमारे,
कब मिटा दें हस्ती तेरी,बूझ भी न पाओगे,
कि,धरा है ये बलिदानी ।
भीख मिले हथियारों पे,इतराओ न इतना,
कि,होती रही है,सदियों से हथियारों की  खेती यहाँ ।

शक्ति,भक्ति,बलिदानी रंग है,केसरिया,
है,रंग सफेद अमन और शांति का ।
उस पर चक्र अशोक,अनवरत उन्नति का,
रंग हरा है,हरियाली,समृद्धि का ।
कुछ बात समझ में आयी ।

हम है मनमौजी,
मौज में आ गए तो समंदर पर सेतु बना लें।
मन हुआ तो चाँद क्या,मंगल भी घूम आएं ।
अंतरिक्ष में उपग्रहों की लाइन लगा दें ।
जी में आया तो,मिसाइलें से ही दीवाली मना लें।
आपकी मिसाइल आपकी सीमा में ही फोड़ दें ।
अब कुछ बात समझ में आई बेटा जानी,
या करोगे अब भी वही नादानी ।

खुद मरो औरों को भी मारो,
ये क्या बात हुई भला ?
जन्नत नसीब नहीं होती ऐसे कर्मों से,
दूसरों की बगिया उजाड़ने से । 
अपनी जन्नत खुद बनानी पड़ती है ।
जन्नत बनती है,लगन,प्रेम और भाई चारे से,
अच्छे कर्मों से,अच्छे विचारों से ।
न कि बेकसूरों का खून बहाने से ।
इंसान का खून बहाने में बड़ाई नहीं है,
इंसान में इंसानियत जगाने में बड़ाई है ।

खुद जियो औरों को भी जीने दो ।
ये बात भली है।
जग ने इसको माना है ।
तू भी इसको समझ ले बेटा जानी ।
अब भी न समझे,तो समझा देंगे,
तुझको तेरी ही भाषा में,
हम हिंदुस्तानी ।

सोने की चिड़िया,मेरी मातृ भूमि


सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि, 
देखो डाल डाल पर फुदक रही है ।
कैसे, तरक्की के गीत गुनगुना रही है ।
और ,नभ की बुलंदियों पे छा रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
देखो,कैसे हौले हौले मुस्कुरा रही है ।
अब,खेतों में छाई बालियों पे,यूँ मगन ,
जैसे परिश्रमी किसानों पे,वारी जा रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
अलंकृत,आधुनिक सैन्य उपकरणों से,
पूरी दुनिया से आँखे चार कर रही है ।
सिहंनी सदृश गरजने को अकुला रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
प्रगति के पथ पर, बढ इठला रही है ।
यह स्वर्ण धरा तकनीकि सम्पन्न हो ,
वैज्ञानिकों संग अंतरिक्ष को चूम रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
खेलों में भी खूब छाई हुई है ,
सोने,चाँदी और कांस्य पदकों से,
धमक ओलंपिक में भी अपनी बनाई हुई है।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृभूमि,
देशवासियों की क्षमता, उपलब्धता पर,
गौरवान्वित और गरिमामयी हो गयी है ।
मानो,शुभाशीष दे पीठ थप थपा रही है ।


सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
झूम झूम के मीठे गीत गा रही है ।
आत्मनिर्भर,शक्ति संपन्न,ओजमय हो,
प्रेम,भाईचारे की निर्मल गंगा बहा रही है ।

Monday, 31 October 2016

दिवाली 2016

दिवाली 2016,


देश पर छाए हैं संकट के बादल घने
सीमा हो रही रंगीन,खून से सनी सनी।

चल रहे हैं सीमा पर बारूदी शोलें, 
जवान सीमा पर खून से नहा रहे ।
सीमा के वासी दर बदर हो रहे है।
इस माहौल में दिवाली संभव नहीं।

संभव भी हो तो,दिल ये मानता नहीं
आप के बिना जो घर,घर नहीं रहा, 
रिक्तता,कोई आपकी भर सकता नहीं। 
शहीदों बिना ये दिवाली हरगिज नहीं।

जान तो जानी है सभी की एक दिन,
पर जो जान जाती है,देश की खातिर 
अमर शहीद के भाग्य ,आती वो सदा।
देश की ही खातिर है, ये  शहीदी मेरी।

दुःख न मनाना मेरे न होने का,यारों
आप की ही खातिर है शहीदी  मेरी।
दुःख न मनाना, मेरे न होने का प्यारों
तिरंगे में लिपटना ही मात्र आरजू मेरी।

Monday, 11 July 2016

चरण वंदना



 

चरण पड़ूँ , हे चरण तुम्हारे ,
तुम ही देह के धारण हारे ।
तुम समान  बली न कोऊ ,
हे  नश्वर  देह के धारण हारे ।

गर्दन गर्व से तनी रहत ,
छाती हमारी फुली रहत ।
तू ही कृपालु इसके कारण ,
हे पुनीत पावन चरण हमारे ।

विशाल काया मे सबसे नीचे ,
परंतु कर्तव्य भाव मे सबसे ऊंचे ।
निठल्ला समझे तुझको मूरख ,
पर धन, माया,शिक्षा तुझसे ही आते ।

खेत खलिहान और शहर घुमाते ,
तुम ही देश- देश की सैर कराते।
बड़े बूढ़ों की सेवा सब करवाते ,
असीम सागर से मोती निकलवाते ।

चोट खाय तुम जब निर्बल हो जाते ,
तब बुद्धि शरीर की चकरा जाती ।
नानी, दादी सब याद आ जाती ,
भारी भरकम काया चित हो जाती ।

चरण पड़ूँ , हे चरण तुम्हारे,
कर जोरि  विनती करूँ तुम्हारी ।
अक्षत, फूल और पादुका चढ़ाऊँ ,
कृपा करहु  तुम स्वजन की नाही ।

चिड़िया टापू दीपस्तंभ की आत्मकथा


            दक्षिणी अंडमान द्वीप के बिल्कुल  दक्षिणी छोर पर, समुद्र से तकरीबन 200 फीट  की ऊंचाई पर, उत्तरी अक्षांस:11°28.80 तथा पूर्वी देशांतर 92°42.66 पर स्थित,मैं यानि चिड़िया टापू दीपसम्भ, मुंडा पहाड़ नामक इस छोटी सी हरी भरी पहाड़ी पर ,आपका स्वागत करता हूँ । यहाँ आसपास का दृश्य बड़ा ही मनोरम और रमणीय है। मेरे बाईं और समुद्र का खुला विस्तार तथा दाईं और समुद्र मे कुछ ही दूरी  पर काला पहाड़ (रटलैंड) द्वीप की विशाल पहाड़ी है । कालापहाड़ के  पास ही, थोड़ी दूरी पर नार्थ सिंक द्वीप स्थित है। इन दोनों द्वीपों के मध्य  जो संकरा सा समुद्री मार्ग है, उसे मैन्नर्स स्ट्रेट के नाम से जाना जाता है । पोर्ट ब्लेयर से चेन्नई जाने और आने वाले जलयान अक्सर इसी  जलमार्ग का उपयोग करतें है।
             
दीपस्तंभ से समुद्र का दृश्य 


             यहाँ मुंडा पहाड़ पर  सुबह और शाम का दृश्य बड़ा ही मनोहर  होता है। बड़े सवेरे ही मेरे बाईं  ओर दूर समुद्र मे, क्षितीज पर,रात्रि की कालिमा को चीरते हुए,लालिमा छाने लगती है और फिर धीरे धीरे गहरे नारंगी सूर्य देव का प्रकाश, समुद्र की विशाल जल राशि पर पिघले हुए सोने सा, चमकने लगता है। कुछ पलों का यह प्राकृतिक दृश्य, बड़ा ही सुंदर और रोमांचक  होता है।
            इसी प्रकार यहाँ पास के चिड़ियाटापू तट की संध्या  का दृश्य भी बड़ा ही  मनोहर होता है । सामने की ओर काला पहाड़ (रटलैंड) द्वीप की विशाल पहाड़ी के पीछे जब, सूर्य देव अस्त होते हैं ,तो  पीछे से आती हुई सूर्य देव की  नारंगी  किरणे बड़ा ही मनोरम और अद्भुत  दृश्य  प्रस्तुत करतीं है ।अंडमान आने वाले सैलानियों का यह मुख्य आकर्षण केंद्र है । सैलानी दिन मे समुद्र तट पर  जलक्रीड़ा का आनंद उठाते है, तो थोड़ा वक्त मेरे यानि चिड़िया टापू दीपस्तंभ लिए भी निकाल लेते हैं,और वापसी मे संध्या काल के इस मनोरम दृश्य का भी आनंद लेते हुए वापस हो लेते  है । यहाँ की शाम देखने के लिए सैलानी  काफी संख्या मे आते हैं ।
  

चिड़िया टापू का समुद्र तट
            पोर्ट ब्लेयर से सड़क मार्ग  द्वारा चिड़िया टापू गाँव पहुंचा जा सकता है ,बस की सुविधा भी उपलब्ध है । रास्ता करीब 30 किलो मीटर लंबा और घुमावदार है, और तकरीबन पैंतालीस से पचास मिनट मे पूरा हो जाता है । अंतिम पन्द्रह मिनट का रास्ता पूरी तरह  से संरक्षित वन क्षेत्र  मे आता है । संरक्षित वन क्षेत्र मे पेड़ पौधों की हरियाली और प्राकृतिक सुषमा मे मन कहीं  खो सा जाता है । चिड़िया टापू  मे वन विभाग का अतिथि गृह तथा बाइलोजिकल पार्क भी है । बाइलोजिकल पार्क  मे विभिन्न जंतुओं और पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास मे देखा जा सकता है । चिड़िया टापू  का यह संरक्षित वन 46 विभिन्न किस्म के पक्षियों (हेंगिंग पैरट,एमराल्ड डव , लॉन्ग टेल्ड एंड रेड ब्रेसटेड पैराकीट्स ,व्हाइट बेललिड इगल्स ,इंपीरियल ग्रीन पिजन इत्यादि) का आवास स्थल है ।  यहाँ से करीब दस मिनट का पहाड़ी रास्ता, आगे को जाता है, और चिड़िया टापू  समुद्र तट पर निकलता है ।  सैलानी यहाँ पर जलक्रीड़ा का आनंद उठाते हैं । वन विभाग के लोग भी सैलानियों की मदद के लिए उपलब्ध रहते हैं । यहाँ से करीब डेढ़ किलोमीटर की यात्रा ,संकरी वन आच्छादित पगडंडी और पहाड़ी से होता हुआ मुझ तक पहुंचता है । ये पैदल यात्रा करीबन बीस से तीस मिनट मे पूरी होती है । इस रास्ते पर चलते हुए थोड़ी दूरी पर ऊंचाई पर पहुँचने  के बाद खुले समुद्र का विहंगम  विस्तार दिखाई पड़ता है । यहाँ पर कुछ देर विश्राम करते हुए, इस दृश्य का आनंद लिया जा सकता है। झींगुरों और पक्षियों  का कलरव यात्रा के आनंद को बढ़ा देता है । इसी छोटी सी पहाड़ी को स्थानीय लोग मुंडा पहाड़ के नाम से जानते है । पोर्ट ब्लेयर शहर से काफी नजदीक होने कारण अक्सर लोग पिकनिक या आउटिंग के लिए आते रहते हैं  ।

दीपस्तंभ को जाने का रास्ता
  मुंडा पहाड़ की इस पहाड़ी पर मेरी  इस पन्द्रह मीटर ऊंची काया का  निर्माण कार्य   4 फरवरी 2009 को आरंभ हुआ । 11  नवंबर  2009 को मेसेर्स  टाइडलैंड निर्मित प्रकाशीय उपकरण की स्थापना की गई । जिसके उपरांत नोएडा मुख्यालय से महानिदेशक महोदय ने भी यहाँ का दौरा किया और कार्य सही ढंग से पूर्ण होने पर सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बधाई दी ।

चिड़िया टापू  दीप स्तम्भ

            दिन मे मेरी पहचान  चिह्न ये काली सफ़ेद पट्टियाँ है जो काफी दूर तक दिखाई देती है , और रात्रिकालीन अंधेरे मे मेरी पहचान मेरे प्रकाशीय  उपकरण से निकलता हुआ प्रकाश है, जिसका अंतराल एक सेकेंड प्रकाश, एक सेकेंड अंधेरा, एक सेकेंड प्रकाश, सात सेकेंड अंधेरा, कुल 10 से केंड (1F+1E+1F+7E=10 Sec.)। फिर इसी अंतराल पर पूरी रात मैं अपनी पहचान प्रकाशित करता रहता हूँ । मेरी ऊर्जा का श्रोत सौर ऊर्जा है, जो 12 वोल्ट 70 वाट के सोलर पैनल द्वारा दिन मे सूर्य की किरणों द्वारा उत्सर्जित होती है, तथा 12 वोल्ट 100 एम्पियर आवार की लेड एसिड रख रखाव मुक्त बैटरी मे  संरक्षित  होती है । यही संरक्षित ऊर्जा अंधेरे मे प्रकाशीय उपकरण द्वारा उत्सर्जित होती है जो समुद्र मे तकरीबन 20 समुद्री मील तक दिखाई देती है । 29 जून 2011 को प्रकाशीय उपकरण मे खराबी आ जाने के कारण मेसेर्स एम एस एम निर्मित प्रकाशीय उपकरण  की स्थापना की गई जो अभी तक कार्य कर रहा है । मेरे यहाँ स्वचालित सूचना प्रणाली भी लगी हुई है जिसके  द्वारा मेरे विभाग के पोर्ट ब्लेयर क्षेत्रीय मुख्यालय मे ऊपर लगे प्रकाशीय उपकरण,बैटरी अथवा सोलर पैनल मे आई खराबी की सूचना प्राप्त हो जाती है । पोर्ट ब्लेयर क्षेत्रीय मुख्यालय मे सूचना प्राप्त होते ही तुरंत ही इन सब खराबियों को दूर करने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, और बहुत कम अंतराल मे ही इन सब खराबियों को दूर कर लिया जाता है ।

            इस प्रकार, दक्षिणी अंडमान द्वीप के बिलकुल  दक्षिणी छोर पर, समुद्र से तकरीबन  200 फीट  की ऊंचाई पर स्थित मैं अपने  विभाग का एक सजग प्रहरी हूँ, और इस वन प्रदेश मे  रहते हुए देश और समाज की निरंतर सेवा मे लगा हुआ हूँ । जब आप जैसे प्रेमी सैलानी मिल जाते है तो अपने मन के भावों को आपके साथ बाँट लेता हूँ ।

                                                                                                                

Saturday, 8 February 2014

रम जा रे पागल मनुवा


रम जा रे पागल मनुवा

रम जा रे,पागल मनवा,श्रीगुरु चरणन मे ,
श्रीगुरु चरणन से पावन इहाँ कछु नहीं रे ।
भवसागर  तारन वाला, वही है खेवैया,
मान ले मनवा,ओ रे चंचल,पागल मनवा ।

रम जा रे,पागल मनवा आशु दरबार मे ,
पुनीत पावन ब्रह्म ज्ञान की दीक्षा देकर,
बाबा आशुतोष करेंगे,सबका बेड़ा पार रे,
मान ले मनवा,ओ रे चंचल,पागल मनवा ।

जब श्वशों मे, नाम बसेगा सृजन हार का,
दिव्य चक्षु से,दर्शन होगा  तारनहार का,
ब्रह्मनाद तो गुंजेंगा बधिरों के भी कानों मे,
चख अमृत  भवसागर हो जाएगा पार रे।

अरे जाग जा चंचल मनवा, मान ले कहना,
रम जा रे,पागल मनवा, श्रीगुरु चरणन मे ।