Monday, 11 July 2016

चरण वंदना



 

चरण पड़ूँ , हे चरण तुम्हारे ,
तुम ही देह के धारण हारे ।
तुम समान  बली न कोऊ ,
हे  नश्वर  देह के धारण हारे ।

गर्दन गर्व से तनी रहत ,
छाती हमारी फुली रहत ।
तू ही कृपालु इसके कारण ,
हे पुनीत पावन चरण हमारे ।

विशाल काया मे सबसे नीचे ,
परंतु कर्तव्य भाव मे सबसे ऊंचे ।
निठल्ला समझे तुझको मूरख ,
पर धन, माया,शिक्षा तुझसे ही आते ।

खेत खलिहान और शहर घुमाते ,
तुम ही देश- देश की सैर कराते।
बड़े बूढ़ों की सेवा सब करवाते ,
असीम सागर से मोती निकलवाते ।

चोट खाय तुम जब निर्बल हो जाते ,
तब बुद्धि शरीर की चकरा जाती ।
नानी, दादी सब याद आ जाती ,
भारी भरकम काया चित हो जाती ।

चरण पड़ूँ , हे चरण तुम्हारे,
कर जोरि  विनती करूँ तुम्हारी ।
अक्षत, फूल और पादुका चढ़ाऊँ ,
कृपा करहु  तुम स्वजन की नाही ।

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