Tuesday, 4 April 2017

सोने की चिड़िया,मेरी मातृ भूमि


सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि, 
देखो डाल डाल पर फुदक रही है ।
कैसे, तरक्की के गीत गुनगुना रही है ।
और ,नभ की बुलंदियों पे छा रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
देखो,कैसे हौले हौले मुस्कुरा रही है ।
अब,खेतों में छाई बालियों पे,यूँ मगन ,
जैसे परिश्रमी किसानों पे,वारी जा रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
अलंकृत,आधुनिक सैन्य उपकरणों से,
पूरी दुनिया से आँखे चार कर रही है ।
सिहंनी सदृश गरजने को अकुला रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
प्रगति के पथ पर, बढ इठला रही है ।
यह स्वर्ण धरा तकनीकि सम्पन्न हो ,
वैज्ञानिकों संग अंतरिक्ष को चूम रही है ।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
खेलों में भी खूब छाई हुई है ,
सोने,चाँदी और कांस्य पदकों से,
धमक ओलंपिक में भी अपनी बनाई हुई है।

सोने की चिड़िया, मेरी मातृभूमि,
देशवासियों की क्षमता, उपलब्धता पर,
गौरवान्वित और गरिमामयी हो गयी है ।
मानो,शुभाशीष दे पीठ थप थपा रही है ।


सोने की चिड़िया, मेरी मातृ भूमि,
झूम झूम के मीठे गीत गा रही है ।
आत्मनिर्भर,शक्ति संपन्न,ओजमय हो,
प्रेम,भाईचारे की निर्मल गंगा बहा रही है ।

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