चरण
पड़ूँ , हे चरण तुम्हारे
,
तुम
ही देह के धारण हारे ।
तुम
समान बली न कोऊ ,
हे
नश्वर
देह के धारण हारे ।
गर्दन
गर्व से तनी रहत ,
छाती
हमारी फुली रहत ।
तू
ही कृपालु इसके कारण ,
हे
पुनीत पावन चरण हमारे ।
विशाल
काया मे सबसे नीचे ,
परंतु
कर्तव्य भाव मे सबसे ऊंचे ।
निठल्ला
समझे तुझको मूरख ,
पर
धन, माया,शिक्षा तुझसे
ही आते ।
खेत
खलिहान और शहर घुमाते ,
तुम
ही देश- देश की सैर कराते।
बड़े
बूढ़ों की सेवा सब करवाते ,
असीम
सागर से मोती निकलवाते ।
चोट
खाय तुम जब निर्बल हो जाते ,
तब
बुद्धि शरीर की चकरा जाती ।
नानी, दादी सब याद
आ जाती ,
भारी
भरकम काया चित हो जाती ।
चरण
पड़ूँ , हे चरण
तुम्हारे,
कर
जोरि विनती करूँ तुम्हारी ।
अक्षत, फूल और
पादुका चढ़ाऊँ ,
कृपा
करहु तुम स्वजन की नाही ।