दिवाली 2016,
देश पर छाए हैं संकट के बादल घने
सीमा हो रही रंगीन,खून से सनी सनी।
चल रहे हैं सीमा पर बारूदी शोलें,
जवान सीमा पर खून से नहा रहे ।
सीमा के वासी दर बदर हो रहे है।
इस माहौल में दिवाली संभव नहीं।
संभव भी हो तो,दिल ये मानता नहीं
आप के बिना जो घर,घर नहीं रहा,
रिक्तता,कोई आपकी भर सकता नहीं।
शहीदों बिना ये दिवाली हरगिज नहीं।
जान तो जानी है सभी की एक दिन,
पर जो जान जाती है,देश की खातिर
अमर शहीद के भाग्य ,आती वो सदा।
देश की ही खातिर है, ये शहीदी मेरी।
दुःख न मनाना मेरे न होने का,यारों
आप की ही खातिर है शहीदी मेरी।
दुःख न मनाना, मेरे न होने का प्यारों
तिरंगे में लिपटना ही मात्र आरजू मेरी।