Sunday, 28 July 2013

सच कहना भी बहुत जरूरी है।



सच कहना भी बहुत जरूरी  है।

 
सच कहना भी बहुत जरूरी है।
पर सच कहने मे इक मजबूरी है,
सच कहते ही झापड़ पड़ते हैं,
झूठ को वाह-वाही मिलती है।

सच कहना भी बहुत जरूरी है ,
पर सच कहने मे भी लाचारी है,
साबित करने को सबूत जुटाना हैं,
झूठ को झटपट आरोप लगाना है।

सच कहना भी बहुत जरूरी है ,
पर सच कहने से जान फंसानी है,
क्योंकि सच,अक्सर होता कड़वा है,
और,झूठ मीठा मुलायम हलवा है।

सच कहना भी बहुत जरूरी है,
पर सच कहने से  काम बिगड़ते हैं,
खरी-खरी पारो भी खूब सुनाती है,
गुड़िया की गुड़िया भी रह जाती है।

सच कहना भी बहुत जरूरी है,
पर पास मे उसके दो कौड़ी है,
झूठ से करते हम सब नफरत है,
पर पास मे उसके सौ कौड़ी है।

सच कहना भी बहुत जरूरी है,
झूठी कुर्सी जब दबाव बढ़ाती है,
फाइलों मे पड़ी सच्चाई दब जाती है,
तब सच कोने पड़ा सुबकता  है।

सच कहना भी  बहुत जरूरी है,
अदालत सच को मान दिलाती है,
खोया सम्मान वापस कराती है,पर
समय और,पैसा भी खूब लगाती  है।

सच कहना भी  बहुत जरूरी है
जीत आखिर उसकी ही होती है,
जीत उसकी अक्सर तब हो पाती है,
जब जीने के इच्छा ही मर जाती है।




Thursday, 11 July 2013

बातें

बातें
बातें,
बातें हैं ,
कहीं भी,किसी से भी ,
कभी भी ,राह चलते भी,
हो जाती हैं बातें ।
बिना किसी औपचारिकता के ही ,
शुरू हो जाती है, बातें।
थोड़ा इधर उधर की बातें,
कुछ क्रिकेट तो कुछ सिनेमा की बातें।
गाँव शहर के  पॉलिटिक्स से,
देश,विदेश के पॉलिटिक्स तक,
मनमोहन से ओबामा तक हो जाती हैं बातें।
बीच बीच मे सब्जी चीनी, दाल की,
गैस ,डीजल ,पेट्रोल की,
सुरसा की तरह बढ़ती महंगाई की ,
हो जाती है,सब तरह  की बातें ।
अपनी गली का मोड भी आ जाता है,
पर, खतम होने को नहीं आती हैं बातें ।
फिर कुछ देर वहीं नुक्कड़ पर, होती हैं बातें,
मन नहीं भरता है, ढेरों काम भी होते हैं,
तब भी, खतम नहीं होती हैं बातें।
अंतत: मन मार कर ,
आपस मे टा-टा, बाय-बाय कर,
हो लेते हैं अपनी राह, छोड़ के सारी बातें ।

ये तो हुईं  राह चलतों से बातें।
मित्रों और रिश्तेदारों से तो, अभी बाकी हैं बातें।
बस यहाँ थोड़ी औपचारिकता से होती हैं बातें,
छोटे बड़े का लिहाज कर होती है बातें,
बाल- बच्चे,परिवार से शुरू होतीं है बातें,
और बड़े-बुजुर्गों तक पहुँच जाती हैं बातें।
कौन क्या कर रहा है, कौन कहाँ सर धुन रहा है,
कौन कमा रहा है, कौन माल उड़ा रहा है,
कौन किसी के  चक्कर मे है ,
सब  तरह की होतीं हैं बातें ।
कुछ लगाई की, कुछ बुझाई की भी होती हैं बातें।
यहाँ बेपर्दा हो जातीं हैं, कई परदानशीं बातें,
कभी आँखों से, तो कभी इशारों मे ,
तो कभी कानों मे फुसफुसाई जाती हैं बातें ।
हों भी क्यों ना ,
आखिर जिंदगी गुलजार करती हैं, बातें।
जहां,बचपन से जवानी तक की,
खट्टी मीठी यादगार होती हैं बातें ,
वही, मन को गुदगुदाती है बातें ।
कभी रुलातीं है, कभी हंसाती है, बातें।
मन का गुबार निकाल देती है बातें ।
भारी मन हल्का कर देती है बातें।
माथे से तनाव की लकीरें मिटा जाती  है बातें।
तनाव ग्रस्त  बीमारी भगा जाती  है फुहार सी  बातें।

मगर कभी कभी बेख्याली मे,जब निकल जाती है बातें,
जहर बुझी कटार सी हो जाती हैं,ये सर्द फुहार सी बातें,
गड़ कलेजे पैनी तीर सी, होती घनेरी पीर सी बातें।
इसलिए मत करना कभी,बेख्याली मे, चुभती तीर सी बातें।
सोच समझ कर खूब कीजिये बातें ,
सच्ची, अच्छी और मनभावन बातें ,
कीजिये सब मिल हँसने हँसाने की बातें,
कीजिये कंधे से कंधा मिला चलने की बातें,
गाँव, देश, समाज की तरक़्क़ी की बातें
संसार का दिल जीतने की बातें,
आइये सब मिल खूब करें बातें ।
आइये सब मिल खूब करें बातें ।